शायद मुझमें अभी भी याद
बाकी है तेरी,
कि अब जब गुजरता हूँ उन
रहों से,
जहॉ कभी तुम्हारे हाथें कि
हथेली कि पकड़ मजबुत करके ले चलती थी मुझे,
उन राहों से तेरी याद
भुलाने कि कोशिश में, और याद आते हो तुम,
कि अब जब सर्द रातों में
कभी दोस्तों के साथ, खुले आसमान में, घण्टों बतलातें है,
तब तुम्हारे संग सर्द
रातों में घण्टों छत पर कि गई बातों को,
भुलाने कि कोशिश में, और याद आते हो तुम ।।
कि अब जब बरसात कि ऋतु आने
को है, और बरसात में फिर भीगने का मन है।
तो बरसात कि उन गिरती बूंदो में, तुम्हारा
मुझसे सर्द के मारे लिपटना,
उस गर्म बरसात को भुलाने कि कोशिश में, और याद
आते हो तुम।।
अंशुल अग्रवाल
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