Anshul Agarwal: April 2019

Tuesday 23 April 2019

तुम इंकार तो ना करोगे





अगर मै चांहू कही बैठकर, तुमसे गुफ्तगूू करना,
समय का वास्‍ता देकर, तुम इंकार तो ना करोगे



गर जो जरूरत हो मुझे, तुम्‍हारे कांधे की,
जी भर के रोने के लिए, तुम इंकार तो ना करोगे


जो कभी सिमटना चाहूं मै, तुम्‍हारी बाहों में,
वास्‍ता दुनिया का देकर, तुम इंकार तो ना करोगे



कभी जो थक हारकर सोना चाहूं मैं, तो आराम के लिए,
तुम्‍हारी गोद में जगह से, तुम इंकार तो ना करोगे


राहो को अगर भटकूं, सही राह पर आने को,
तुम्‍हारी अंगुलियों के सहारे से, तुम इंकार तो ना करोगे


कभी जो मन उदास हो, और हंसने का जी चाहे,
तुम्‍हारे चहरे पर हंसी आने से, तुम इंकार तो ना करोगे


अगर कभी जो हाथ थाम कहूं, मुझे तुमसे मोहब्‍बत है,
तो अपनी चाहत को जुंबा पे आने से, तुम इंकार तो ना करोगे

तुम इंकार तो ना करोगे।

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वो जिसे हम पसन्‍द करते है
बन्द कमरो सी जिंदगीयाद
आते हो तुम

आदत नही है मेरी


Tuesday 9 April 2019

वो जिसे हम पसन्‍द करते है



वो जिसे हम पसन्‍द करते है,
वो किसी ओर का इंतजार करते हे।
ओर वो उन्‍ही कि बातें हमसे हर बार करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।।

जब हम उनकी गलियों से गुजरते है,
वो किसी ओर का इंतजार दरवाजे पर करते है।
और हमें एक मुस्‍कान से अनदेखा करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।।

हम अपने दोस्‍तों में उनकी, और वो,
सहेलीयों में किसी और कि तारीफ करते है।
ओर हमें पागल कह के बात करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।।

बाजार में हम उनके लिए, और वो,
किसी ओर के लिए व्‍यापार करते है।
और हमें देख कर ‘अरे आप’ कह कर बात करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।।

हम मोबाइल पर उनका, और वो,
किसी और का ऑनलाइन आने का इंतजार करते है।
और हमसे सिर्फ स्‍माइली से बात करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।

मगर इक दिन आयेगा जब उनसे कह पायेंगे,
कि हम भी आपसे प्‍यार करते है।
फिर देखते है क्‍या वो इंकार करते है,
वो जिसे हम पसन्‍द करते है।।

Sunday 7 April 2019

चाहता हूं मै


वही होने से डरता हूं जो होना चाहता हूं मै,
उसी को खोजता हूं जिसको खोना चाहता हूं मै,
बहुत जागा हूं गहरी नींद में सोना चाहता हूं मै,
जंमी अब तुझसे दो गज बिछौना चाहता हूं मै,
कभी बाहर निकलकर खुल के रोना चाहता हूं मै,
कभी रोने को घर का एक कोना चाहता हूं मै,
बहलता ही नही जी मेरा कुदरत के करिश्‍मों से,
खुदा से क्‍या पता कैसा खिलौना चाहता हूं मै
जहां से बच-बचाकर कश्तियां जा‍ति है साहिल तक,
वही पर अपनी कश्‍ती को डूबोना चाहता हूं मै,
समुन्‍दर को नही प्‍यासी जंमी को जो करे सरेबा,
कुछ ऐसे बादलो के बीज बोना चाहता हूं मै

Tuesday 2 April 2019

पहचानते नही....

मतलब निकल गया है तो पहचानते नही
यूं जा रहे है जैसे हमें जानते नही, मतलब...

अपनी गरज थी तब तो लिपटना कबूल था,
बॉहों के दायरे में सिमटना कबूल था।
अब हम मना रहे है मगर मानते नही,

मतलब निकल गया है तो पहचानते नही।।


हमने तुम्‍हे पसन्‍द किया क्‍या बुरा किया,
रूतबा ही कुछ बुलन्‍द किया क्‍या बुरा किया।
हर इक गली की खाक तो हम छानते नही,
मतलब निकल गया है तो पहचानते नही।।


मुॅह फेर के न जाओं हमारे करीब से,
मिलता है कोई चाहने वाला नसीब से।
इस तरह आशिकों पें कमॉं तानते नही,
मतलब निकल गया है तो पहचानते नही।।

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Sainthal Dausa, Rajasthan, India