वही होने से डरता हूं जो होना चाहता हूं मै,
उसी को खोजता हूं जिसको खोना चाहता हूं मै,
बहुत जागा हूं गहरी नींद में सोना चाहता हूं मै,
जंमी अब तुझसे दो गज बिछौना चाहता हूं मै,
कभी बाहर निकलकर खुल के रोना चाहता हूं मै,
कभी रोने को घर का एक कोना चाहता हूं मै,
बहलता ही नही जी मेरा कुदरत के करिश्मों से,
खुदा से क्या पता कैसा खिलौना चाहता हूं मै
जहां से बच-बचाकर कश्तियां जाति है साहिल तक,
वही पर अपनी कश्ती को डूबोना चाहता हूं मै,
समुन्दर को नही प्यासी जंमी को जो करे सरेबा,
कुछ ऐसे बादलो के बीज बोना चाहता हूं मै
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