दुनिया ने हमेशा कहां है,
हर किसी में कोई ना कोई कमी है,
मै भी कमियों का पुतला हुं,
मुझमें भी कमियों का भण्डार है,
मुझे डर लगता है, दुसरो से दुर होने का,
पर मै अपनो से हमेशा दुर रहता हूं,
मुझमें कमी है, हर किसी से दोस्ती करने की,
दोस्ती में विश्वास करने की,
पर हर बार कमी से अविश्वास ही मिला है मुझे,
हां मै, हां मै मानता हुं कि मुझमें कमी है,
हर किसी से प्यार करने की, हर किसी को खुश देखने कि,
पर हर बार प्यार निभाने में कि कमी रही है मुझमें,
हर किसी को आंसु दिये है मैने,
मुझमें कमी है, हर किसी से खुल कर बात करने की,
पर हर किसी से बात करने से डरता हुं मै,
मुझमें कमी है, अपने दिल की बात हर किसी को बताने की,
पर हर बात अपनो से छुपाता हुं मै,
मुझमें कमी है, हर बात को सही साबित करने की,
पर हर बात जो सही है, वो कहने और करने से डरता हुं मै,
मुझमें कमी है, हर किसी का कहा मानने की,
पर हर बार मां-बाप की बातों को अनदेखा करता हुं मैं,
हर किसी में कोई ना कोई कमी है,
No comments:
Post a Comment